Om Jai Shiv Omkara Lyrics – Mahadev

Om Jai Shiv Omkara Om Jai Shiv Omkara Lyrics Om Jai Shiv Omkara Lyrics [su_heading]Om Jai Shiv Omkara Lyrics[/su_heading] ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे स्वामी पञ्चानन राजे हंसासन गरूड़ासन हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॐ जय शिव ओंकारा दो भुज चार चतुर्भुज, दसभुज ते सोहे स्वामी दसभुज ते सोहे तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता त्रिभुवन मन मोहे ॐ जय शिव ओंकारा अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी स्वामी मुण्डमाला धारी चन्दन मृगमद चंदा चन्दन मृगमद चंदा भोले शुभ कारी ॐ जय शिव ओंकारा श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे स्वामी बाघाम्बर अंगे ब्रह्मादिक संतादिक ब्रह्मादिक संतादिक भूतादिक संगे ॐ जय शिव ओंकारा कर मध्ये च’कमण्ड चक्र त्रिशूलधरता स्वामी चक्र त्रिशूलधरता जग कर्ता जग हरता जग कर्ता जग हरता जगपालन करता ॐ जय शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका प्रनाबाच्क्षर के मध्ये प्रनाबाच्क्षर के मध्ये ये तीनों एका ॐ जय शिव ओंकारा त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ जन गावे स्वामी जो कोइ जन गावे कहत शिवानन्द स्वामी कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे ॐ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा

Om Jai Shiv Omkara Om Jai Shiv Omkara Lyrics Om Jai Shiv Omkara Lyrics शिव बोले यहाँ महादेव बोले यह महाकाल बोले कोई पार्क नहीं परता शिव हम सबके गुरु है देवो के देव है शिव। शिव न नाम लेने मात्र से दिल को एक सुखुन सा मिलता है। और अगर ॐ नमः शिवाय बोल … Read more

Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi

Sunder Kand Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi हनुमान जी का सुन्दर कांड से पहले थोड़ा सा हनुमान जी का महत्व के बारे मैं जान लेते है। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi हिंदू ग्रंथ के अनुसार, हनुमान की माता अंजना और पिता केसरी हैं। हनुमान जी को पवन पुत्र के रूप भी कहा जाता है। हनुमान जी का जन्म किष्किन्धा में हुआ था। कर्नाटक के गंगावती तालुक कोप्पल जिले में अंजनेरी अंजनाद्री (हम्पी के पास) कई स्थानों में से एक है, जो कि किष्किंधा का स्थान होने का दावा करते हैं। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक दिन जब हनुमान जी सुबह उठे तो उन्हें बहुत जोर की बुक लगी थी तो उन्हें अस्समान मैं एक लाल रंग का गोल जैसा कुछ दिखा उनको लगा की वो एक फल है तो वो उसे खाने चल गए परन्तु वो सूर्य था जो सुबह के समय वो लाल रंग के हो जाते है, पर हनुमान जी थारे नन्हे सारती बालक उनको तो भूक लगी थी उनको तो उस समय अपना भूक मिटाना था तो वो जैसे ही सूर्य के पास पहुंचे, देवताओ के राजा इंद्रा ने अपने वज्र से हनुमान जी के जबड़े पर बज्र से प्रहार किए और हनुमान जी अपने टूटे हुए जबड़े के साथ निचे मरे हुए अवस्था मैं गिर गए. तब पवन देव को बहुत गुस्सा आया (क्युकी हनुमान जी पवन पुत्र भी थे) और उन्होंने हवा को बहने से रोक दिए, फिर क्या था सभी प्राणी चाहे वो इंसान हो यह जानवर सबको सास लेने मैं तकलीफ होने लगी सभी मरने के अवस्था मैं हो गए, तभी भगवान शिव प्रकट हुए और पवन देव से हनुमान जी को फिरसे जीवित करने का कसम दिए तब जेक पवन देव जी ने फिरसे हवा को चालू किआ और फिरसे दुनिया क सरे जीवित प्राणी के जान मैं जान आए. जब शिव जी ने हनुमान जी को टिक कर दिए तो हनुमान जो को इंद्रा ने एक वरदान दिए, हनुमान जी का सरीर बज्र जैसा मजबूत होगा और इंद्रा का बज्र वि हनुमान जी का कुछ पाएगा। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi जैसे इंद्रा ने हनुमान जी को वरदान दिए वैसे ही बाकि देवताओ भी हनुमान जी को वरदान मैं अपनी कुछ कुछ शक्तिया। जैसे की अग्नि देव जी ने हनुमान जी को वरदान मैं - मेरी अग्नि तुम्हरा कभी कुछ नहीं बिगड़ पाएगी। जल के देवता वरुण देव जी ने हनुमान जी को वरदान मैं - तुम्हे मेरी जल कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी। पवन देव ने हनुमान जी को वरदान मैं कहा की उनकी वायु उनको कभी नुकसान नहीं पहुंचाएगी और वो हवा के तरह तेज़ होंगे। ब्रम्हा जी ने कहा की वो किसी भी आस्थान मैं जा शकते है और उनको कोई भी कही जाने से रोक नहीं शकता। फिर आखिर मैं हनुमान जी को विष्णु ने गदा दी। इन तमान शक्तियों के साथ हनुमान जी को अमर कहा जाता है और बोला जाता है की हनुमान जी हर युग मैं है और कलयुग मैं तो एक मात भगवन है वो है। उनकी सुन्दर कांड के जाप का बहुत महत्व है। तो हनुमान जी नाम लेकर सुन्दर कांड का पाठ आरम्भ करते है। [su_heading]Sampurn SunderKand Lyrics In Hindi[/su_heading] ॥ॐ श्री परमात्मने नमः॥ वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु में देव, सर्व-कार्येशु सर्वदा विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय | नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते | प्रनवऊं पवनकुमार खल बन पावक ज्ञान धन। जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥ दो0-बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई। उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ।।29।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा।। जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक।। कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।। पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।। कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।। राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।। कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।। सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा।। सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी।। जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही।। एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई।। तब निज भुज बल राजिव नैना। कौतुक लागि संग कपि सेना।। छं0–कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं। त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं।। जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई। रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई।। दो0-भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि।।30(क)।। सो0-नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक। सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक।।30(ख)।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी श्री गणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस ~~~~~~~~ पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।1।। नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।2।। अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।। तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।। जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।। यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।। सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।। बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।। जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।। जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।। दो0- हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।1।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।। सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।। आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।। राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।। तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।। कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।। जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।। सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।। जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।। सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।। बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।। मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।। दो0-राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान। आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।2।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।। जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।। गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।। सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।। ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।। तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।। नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।। सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।। उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।। गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।। अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।। छं=कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना। चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।। गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै।। बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।।1।। बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं।। कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं।।2।। करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।। एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।।3।। दो0-पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार।।3।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।। नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।। जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।। मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।। पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।। जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।। बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।। तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।। दो0-तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।4।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।। गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।। अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।। मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।। गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।। सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।। भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।। दो0-रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ।।5।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।। मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।। राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।। एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।। बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।। करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।। की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।। की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।। दो0-तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।6।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।। तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा।। तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।। अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।। जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।। सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।। कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।। प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।। दो0-अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।7।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी।। एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा।। पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही।। तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता।। जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई।। करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ।। देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा।। कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी।। दो0-निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।8।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई।। तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।। बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।। कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।। तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।। तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा।। अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।। सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।। दो0- आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन।।9।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।। नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।। स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।। सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा।। चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।। सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।। सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा।। कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई।। मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi दो0-भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद।।10।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका।। सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।। सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।। खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।। एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।। नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।। यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।। तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं।। दो0-जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच।।11।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।। तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई।। आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।। सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।। सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।। निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।। कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला।। देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा।। पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी।। सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका।। नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना।। देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता।। सो0-कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब। जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ।।12।। तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।। चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।। जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।। सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।। रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।। लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।। श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई।। तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ।। राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।। यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।। नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें।। दो0-कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।। जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास।।13।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।। बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना।। अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी।। कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई।। सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक।। कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता।। बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी।। देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता।। मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।। जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi दो0-रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर। अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर।।14।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता।। नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू।। कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा।। जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।। कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।। तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा।। सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं।। प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।। कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता।। उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई।। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi दो0-निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु। जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु।।15।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई।। रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की।। अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई।। कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।। निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।। हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना।। मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।। कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।। सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ।। दो0-सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।।16।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।। आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।। अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।। करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।। बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।। अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।। सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।। सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी।। तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi दो0-देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु।।17।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।। रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।। नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।। खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे।। सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।। सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे।। पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।। आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।। दो0-कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।18।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।। मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।। चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।। कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।। अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।। रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।। तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा। मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।। उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi दो0-ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।19।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।। तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ।। जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।। तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा।। कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए।। दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई।। कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता।। देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका।। दो0-कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद। सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद।।20।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा।। की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही।। मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा।। सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया।। जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा। जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन।। धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता। हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा।। खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली।। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi दो0-जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।।21।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।। समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।। खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।। सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।। जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।। मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा।। बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।। देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।। जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई।। तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै।। दो0-प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।।22।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।। रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका।। राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।। बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी।। राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।। सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं।। सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।। संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही।। दो0-मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।23।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी।। बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी।। मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही।। उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना।। सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना।। सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए। नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता।। आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई।। सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।। दो-कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ। तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ।।24।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।। जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँûमैं तिन्ह कै प्रभुताई।। बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना।। जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।। रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।। कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी।। बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी।। पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता।। निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं।। दो0-हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।। जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।। तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा।। हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई।। साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा।। जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं।। ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा।। उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।। दो0-पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि।।26।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा।। चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।। कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा।। दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।। तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु।। मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा।। कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना।। तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती।। दो0-जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह।।27।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी।। नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा।। हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।। मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा।। मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी।। चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा।। तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए।। रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे।। दो0-जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज।।28।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई।। एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा।। आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा।। पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी।। नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना।। सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ। राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा।। फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई।। दो0-प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज। पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज।।29।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया।। ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर।। सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रेलोक उजागर।। प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू।। नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी।। पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।। सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए।। कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की।। दो0-नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।30।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही।। नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी।। अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।। मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।। अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना।। नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा।। बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा।। नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी। सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।। दो0-निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति। बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति।।31।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना।। बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।। कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।। केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।। सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।। प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।। सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।। पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।। दो0-सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत। चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।32।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा।। प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।। सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।। कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।। कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।। प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।। साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।। नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा। सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।। दो0- ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल। तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।33।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी।। सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी।। उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना।। यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा।। सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा।। तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा।। अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे।। कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी।। दो0-कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ। नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ।।34।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा।। देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना।। राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा।। हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।। जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।। प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।। जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई।। चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा।। नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी।। केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं।। छं0-चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे।। कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं। जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं।।1।। सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई। गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई।। रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी। जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी।।2।। दो0-एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर। जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर।।35।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका।। निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।। जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।। दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।। रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।। कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।। समुझत जासु दूत कइ करनी। स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी।। तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।। तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।। सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।। दो0–राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक। जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।36।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।। सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।। जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।। कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।। अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।। मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।। बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।। बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।।

Sunder Kand Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi हनुमान जी का सुन्दर कांड से पहले थोड़ा सा हनुमान जी का महत्व के बारे मैं जान लेते है। Sampurn Sunder Kand Lyrics In Hindi हिंदू ग्रंथ के अनुसार, हनुमान की माता अंजना और पिता केसरी हैं। हनुमान जी को पवन पुत्र के रूप भी कहा जाता … Read more

Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics – जय श्री राम

Hanuman Aarti Lyrics In Hindi Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics आरती कीजै हनुमान लाला की,hanuman Aarti, Aarti Keeje Hanuman Lala Ki, Shree Hanuman Chalisa. Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics हनुमान एक हिंदू भगवान और भगवान राम के दिव्य वानर साथी हैं। भगवान हनुमान संभवतः हिंदू महाकाव्य रामायण के केंद्रीय पात्रों में से एक हैं। वह एक ब्रह्मचारी (जीवन लंबा ब्रह्मचर्य) और कई चिरंजीवी में से एक है। उनसे कई ग्रंथों के बारे में बात की जा सकती है, जैसे कि महाकाव्य महाभारत और मिश्रित पुराण। हनुमान पवन-देवता वायु के पुत्र भी हैं। [su_youtube url="https://youtu.be/r7GJ8GoGSD8" width="320" height="260" autoplay="yes"] [su_heading]Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics[/su_heading] आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की जाके बल से गिरिवर कांपे रोग दोष जाके निकट न झांके अंजनि पुत्र महा बलदाई सन्तन के प्रभु सदा सहाई आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की दे बीरा रघुनाथ पठाए लंका जायी सिया सुधि लाए लंका सो कोट समुद्र सीखाई जात पवनसुत बार न लाई आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की लंका जारि असुर संहारे सियारामजी के काज सवारे लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे आनि संजीवन प्राण उबारे आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की पैठि पाताल तोरि जम कारे अहिरावण की भुजा उखारे बाएं भुजा असुरदल मारे दाहिने भुजा संत जन तारे आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की सुर नर मुनि आरती उतारें जय जय जय हनुमान उचारें कंचन थार कपूर लौ छाई आरती करत अंजनी माई आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की जो हनुमानजी की आरती गावे बसि बैकुण्ठ परम पद पावे लंक बिध्वंश किन्ही रघुराई तुलसी दस स्वामी आरती गाई आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की दुष्ट दलन रघुनाथ कला की आरती कीजै हनुमान लला की

Hanuman Aarti Lyrics In Hindi Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics आरती कीजै हनुमान लाला की,hanuman Aarti, Aarti Keeje Hanuman Lala Ki, Shree Hanuman Chalisa. Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics हनुमान एक हिंदू भगवान और भगवान राम के दिव्य वानर साथी हैं। भगवान हनुमान संभवतः हिंदू महाकाव्य रामायण के केंद्रीय पात्रों में से एक हैं। वह … Read more

Shri Ram Raksha Stotra Lyrics – Valmiki

श्री राम रक्षा स्तोत्र Shri Ram Raksha Stotra Lyrics The composer of the Rama Raksha Stotra is Budha Kaushika (Valmiki), a Rishi. Lord Shiva got here into Budha Kaushika's dream and sung these 38 stanzas to him. One who sincerely recites this stotra and understands it is which means, Lord Rama protects his thoughts and prepares it to know the last word reality. Chanting of the stotra is beneficial as a remedial measure for squabblings, enmity, losses, and hurdles. By reciting each particular person shlok one could be benefited independently. For instance, by reciting "Aaapdaampahartaaram Daataaram Sarvasampadaam" 1 lakhs occasions one will be capable of clear all his money owed. By reciting "Kausallyeyo Drushau Paatu Vishvamitra Priya-h Shrutee", sickness associated with eyes might be cured. Special public recitation of the stotra is organized throughout non-secular festivals, particularly throughout Navaratri celebrations, when steady recitation takes place from Gudi Padwa until Rama Navami day, the birthday of Lord Rama. [su_heading]Shri Ram Raksha Stotra Lyrics[/su_heading] श्रीगणेशायनम: । अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य । बुधकौशिक ऋषि: । श्रीसीतारामचंद्रोदेवता । अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: । श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम् । श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥ ॥ अथ ध्यानम् ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥ वामाङ्‌कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥ ॥ इति ध्यानम् ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥ रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥ करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥ सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥ जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥ एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥ पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥ रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥ जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥ वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥ आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥ आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥ तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥ फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥ शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥ आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥ संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌ मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥ रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥ वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥२३॥ इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥ रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥ रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् । राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥ रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥ माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥ दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥ लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥ मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥ कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥ आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥ भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥ रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

श्री राम रक्षा स्तोत्र Shri Ram Raksha Stotra Lyrics The composer of the Rama Raksha Stotra is Budha Kaushika (Valmiki), a Rishi. Lord Shiva got here into Budha Kaushika’s dream and sung these 38 stanzas to him. One who sincerely recites this stotra and understands it is which means, Lord Rama protects his thoughts and … Read more

Shiv Ke Diwane – शिव के दीवाने – PR Tiwari

शिव के दीवाने Shiv Ke Diwane – शिव के दीवाने – PR Tiwari Song: Shiv Ke Diwane Singer: PR Tiwari Lyrics: Mukul Manmit Music: Shankar Singh Publicity Design: Gopi Baath Social Media: Gaurav Suri Label: Speed Records Bhojpuri Shiv Ke Diwane – शिव के दीवाने – PR Tiwari Latest Bhojpuri Kanwar song Shiv Ke Diwane, … Read more

शिव चालीसा – Shiv chalisa HD Song Lyrics

Shiv chalisa HD Song Lyrics

शिव चालीसा Shiv chalisa HD Song Lyrics हिन्दू धर्म में त्रिदेवों की कल्पना की गई है। मान्यता है कि यही त्रिदेव विश्व के रचयिता, संचालक और पालक हैं। त्रिदेवों में को संहारक माना गया है। शिवजी को उनके भोले स्वभाव के कारण भोलेनाथ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि शिवजी की आराधना करने … Read more

Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English

Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English - संकटमोचन हनुमान अष्टक गीत - Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics - बाल समय रवि भक्षी लियो तब, Baa Samay Rabi Bhakshi Liyo Tab - संकटमोचन हनुमान अष्टक गीत - Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English ॥ हनुमानाष्टक ॥ बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों। ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो। देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो। को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥ Baa Samay Rabi Bhakshi Liyo Tab Tinhu Lok Bhayo Andhiyaaro Taahi So Tras Bhayo Jag Ko Yeh Sankat Kaahu Sau Jaat Ne Taaro Devan Aani Kari Binti Tab Chadi Diyo Rab Kasht Nivaaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 1 ॥ Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो। चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो। कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ २ ॥ Baa Ki Traas Kapis Basey Giri Jaat Mahaprabhu Panth Niharo Chaunki Maha Muni Shaap Diyo Tab Chahiy Kaun Bichar Bicharo Kay Dwij Roop Livaya Mahaprabhu So Tum Das Ke Sok Nivaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 2 ॥ Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो। जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो। हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ३ ॥ Angad Ke Sang Len Gaye Siya Khoj Kapis Yeh Bain Ucharo Jivat Na Bachiho Hum So Ju Bina Sudhi Laye Iha Pag Dhaaro Her Thakey Tat Sindhu Sabey Tab Lay Siya-Sudh Pran Ubaaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 3 ॥ Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो। चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ४ ॥ Raavan Traas Dai Siya Ko Sab Raakshashi So Kahi Sok Nivaaro Taahi Samay Hanuman Mahaprabhu Jaaya Maha Rajnichar Maaro Chahat Siya Asok So Aagi Su Dai Prabhu Mudrika Sok Nivaaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 4 ॥ Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो। लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो। आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ५ ॥ Baan Lagyo Ur Laxman Ke Tab Pran Tajey Sut Ravan Maaro Ley Grah Baidya Sushen Samet Tabey Giri Dron Su Bir Upaaro Aani Sajeevan Haath Dai Tab Laxman Ke Tum Pran Ubaaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 5 ॥ रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो। श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो I आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ६ ॥ Ravan Judh Ajaan Kiyo Tab Naag Ki Faans Sabey Sir Daaro ShriRagunath Samet Sabey Da Moh Bhayo Yeh Sankat Bhaaro Aani Khages Tabey Hanuman Ju Bandhan Kaati Sutraas Nivaaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 6 ॥ बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो। देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो। जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ७ ॥ Bandhu Samet Jabey Ahiravan Ley Ragunath Pataa Sidhaaro Debihi Puji BhaiBidhi So Bai Deoo Sabey Mii Mantra Bichaaro Jaaya Sahaya Bhayo Tab Hi Ahiravan Sainya Samet Sanhaaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 7 ॥ काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो। कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो। बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ ८ ॥ Kaaj Kiye Bad Devan Ke Tum Bir Mahaprabhu Dekhi Bichaaro Kaun So Sankat Mor Garib Ko Jo Tumso Nahi Jaat Hai Taaro Baig Haro Hanuman Mahaprabhu Jo Kuch Sankat Hoey Hamaro Ko Nahi Jaanat Hai JagMein Kapi Sankatmochan Naam Tihaaro ॥ 8 ॥ Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English ॥ दोहा ॥ लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर। वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥ Doha Laa Deh Laai Lase Aru Dhari Laa Langoor Bajra Deh Daanav Daan Jay Jay Jay Kapi Soor [su_heading size="33" margin="40"]Story[/su_heading] Sankat Mochan Hanuman Ashtak, also known as Hanuman Aashtak, is a Hindu bhajan devotional song dedicated to Lord Hanuman. Sankatmochan Hanuman Ashtakam (Sankat Mochan Naam Tiharo) was written by Tulsidas, a great devotee of Lord Hanuman. Ashtak, or Astakam, literally means eight and the prayer contains eight verses in praise to Lord Hanuman and the bhajan ends with a Doha. In most of Hanumanji’s temples, this ashtak is chanted after Hanuman Chalisa. This mantra benefits not only those who pronounce it but also their family members. This mantra helps with mental relaxation and produces a sense of peace in the family. Chanting of this mantra regularly contributes to improving the health conditions of adults and children. There are also cases in which this mantra has been successful in obtaining positive judicial results. Sankatmochan Hanuman Ashtak is sung for the general well-being of a person and his family. All obstacles are easily eliminated and there is no obstacle to succeed in the chosen field. Sankatmochan Hanuman’s ashtakm Song also guarantees success in education and helps people pursue higher education as they wish. संकट मोचन हनुमान अष्टक, जिसे हनुमान अष्टक के रूप में भी जाना जाता है, एक हिंदू भजन भक्ति गीत है जो भगवान हनुमान को समर्पित है। संकटमोचन हनुमान अष्टकम (संकट मोचन नाम तिहारो) भगवान हनुमान के एक महान भक्त तुलसीदास द्वारा लिखा गया था। अष्टक या अष्टकम् का शाब्दिक अर्थ है आठ और प्रार्थना में भगवान हनुमान की स्तुति में आठ छंद होते हैं और भजन दोहा के साथ समाप्त होता है। हनुमानजी के अधिकांश मंदिरों में, हनुमान चालीसा के बाद इस अष्टक का जाप किया जाता है। इस मंत्र से न केवल इसका उच्चारण करने वालों को बल्कि उनके परिवार के सदस्यों को भी लाभ मिलता है। यह मंत्र मानसिक विश्राम में मदद करता है और परिवार में शांति की भावना पैदा करता है। इस मंत्र का जप नियमित रूप से वयस्कों और बच्चों की स्वास्थ्य स्थितियों को बेहतर बनाने में योगदान देता है। ऐसे मामले भी हैं जिनमें यह मंत्र सकारात्मक न्यायिक परिणाम प्राप्त करने में सफल रहा है। संकटमोचन हनुमान अष्टक एक व्यक्ति और उसके परिवार की सामान्य भलाई के लिए गाया जाता है। सभी बाधाएं आसानी से समाप्त हो जाती हैं और चुने हुए क्षेत्र में सफल होने के लिए कोई बाधा नहीं है। संकटमोचन हनुमान का अष्टकम् गीत भी शिक्षा में सफलता की गारंटी देता है और लोगों को उनकी इच्छानुसार उच्च शिक्षा प्रदान करने में मदद करता है।

संकटमोचन हनुमान अष्टक गीत – Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics   Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English   Sankat Mochan Hanuman Ashtak Lyrics In हिंदी & English ॥ हनुमानाष्टक ॥ बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों। ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न … Read more

Shiva Tandava Stotram Lyrics In Hindi With Meaning

Shiva Tandava Stotram Lyrics In Hindi With MeaningShiva Tandava Stotra is a stotra that describes Shiva's power and beauty. It is traditionally attributed to Ravana, the King of Lanka, and devotee of Shiva. Shiva Tandava Stotram Lyrics In Hindi With Meaning The stotra is in the Pañca-cāmara chanda[clarification needed]. It has 16 syllables per line of the quatrain, with laghu and guru characters alternating; the poetic meter is iambic octameter by definition. There are 16 quatrains in total. Both the ninth and tenth quatrains of this hymn conclude with lists of Shiva's epithets as destroyer, even the destroyer of death itself. Alliteration and onomatopoeia create roiling waves of resounding beauty in this example of Hindu devotional poetry. In the final quatrain of the poem, after tiring of rampaging across the earth, Ravana asks, "When will I be happy?" Because of the intensity of his prayers and ascetic meditation, of which this hymn was an example, Ravana received from Shiva powers and a celestial sword called Chandrahas. The story is that Ravana, a devotee of Shiva who was also the king of Lanka, tried to take Kailasa, the abode of Shiva, to Lanka in his shoulders. So Shiva, who wanted to teach him a lesson placed his big toe upon Kailasa which caused it to come crashing down over Ravana. Realizing the power of Shiva and out of agony he plucked his intestines and played a tune and sang praise dedicated to Shiva, which, in time came to be known as the Shiva Tandava Stotram. [su_heading size="33" margin="40"]Shiva Tandava Stotram Lyrics In Hindi With Meaning[/su_heading] जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥ उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है, और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है, और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है, भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें। जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥ मेरी शिव में गहरी रुचि है, जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है, और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं। धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥ मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे, अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं, जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है, और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं। जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे। मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥ मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं, उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है, ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है। सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥ भगवान शिव हमें संपन्नता दें, जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं, जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है, जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है। ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥ शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था, जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं। करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके। धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥ मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं, जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया, उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है, वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर, सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं। नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः। निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥ भगवान शिव हमें संपन्नता दें, वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं, जिनकी शोभा चंद्रमा है, जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है, जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है। प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥ मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है, पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है। जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया। अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌। स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥ मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण, जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया। जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्। धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥ शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है, जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई। दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः। तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥ मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता, जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि, घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति, सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति? कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥ मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए, अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए, अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए, महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित? इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌। हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥ इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है, वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है। इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है। बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है। [su_heading size="33" margin="40"]Story[/su_heading] रावण शिव का महान भक्त था, और उनके बारे में अनेक कहानियां प्रचलित हैं। एक भक्त को महान नहीं होना चाहिये लेकिन वह एक महान भक्त था। वह दक्षिण से इतनी लंबी दूरी तय कर के कैलाश आया- मैं चाहता हूँ कि आप बस कल्पना करें, इतनी लंबी दूरी चल के आना – और वो शिव की प्रशंसा में स्तुति गाने लगा। उसके पास एक ड्रम था, जिसकी ताल पर उसने तुरंत ही 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। उसके संगीत को सुन कर शिव बहुत ही आनंदित व मोहित हो गये। रावण गाता जा रहा था, और गाने के साथ–साथ उसने दक्षिण की ओर से कैलाश पर चढ़ना शुरू कर दिया। जब रावण लगभग ऊपर तक आ गया, और शिव उसके संगीत में मंत्रमुग्ध थे, तो पार्वती ने देखा कि एक व्यक्ति ऊपर आ रहा था। अब ऊपर, शिखर पर केवल दो लोगों के लिये ही जगह है। तो पार्वती ने शिव को उनके हर्षोन्माद से बाहर लाने की कोशिश की। वे बोलीं, “वो व्यक्ति बिल्कुल ऊपर ही आ गया है”। लेकिन शिव अभी भी संगीत और काव्य की मस्ती में लीन थे। आखिरकार पार्वती उनको संगीत के रोमांच से बाहर लाने में सफल हुईं। और जब रावण शिखर तक पहुंच गया तो शिव ने उसे अपने पैर से धक्का मार कर नीचे गिरा दिया। रावण, कैलाश के दक्षिणी मुख से फिसलते हुए नीचे की ओर गिरा। ऐसा कहा जाता है कि उसका ड्रम उसके पीछे घिसट रहा था और जैसे-जैसे रावण नीचे जाता गया, उसका ड्रम पर्वत पर ऊपर से नीचे तक, एक लकीर खींचता हुआ गया।अगर आप कैलाश के दक्षिणी मुख को देखें तो आप बीच में से ऊपर से नीचे की तरफ आता एक निशान देख सकते हैं । Shiva Tandava Stotram Lyrics In Hindi With Meaning

Shiva Tandava Stotra is a stotra that describes Shiva’s power and beauty. It is traditionally attributed to Ravana, the King of Lanka, and devotee of Shiva. Shiva Tandava Stotram Lyrics In Hindi With Meaning The stotra is in the Pañca-cāmara chanda[clarification needed]. It has 16 syllables per line of the quatrain, with laghu and guru … Read more

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